* नभ के तारे *
नभ के तारे
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नभ के तारे झिलमिल करते,
कहते हमसे घुलमिल करके ।
छिपा रहस्य ब्रह्मांड के सारे,
हम सब तो हैं नभ के तारे ।
सुरज चांद से भी ऊपर ,
आकाश गंगा है ढेरो सारे ।
हम सब उसमें सभी विचरते,
अद्भुत हैं परिवार हमारे।
तिमिर निशा के खुले गगन में,
दीप्त सप्तर्षि सदा दमकते ।
वेदों के सरंक्षक बन उत्तर में,
युगों-युगों से है ये कुछ कहते ।
तारे असंख्य में,एक ध्रुव भी है,
दिशा ज्ञान पहचान है बनती।
सदियों से सागर के सहचर ,
जिसे देख उत्तर दिश चलती।
प्रभु की गोद में बैठने को आतुर,
बालक ध्रुव ने घोर तप वरदान लिया।
अटल भक्ति प्रतिमान रूप में,
नभ के आंगन में स्थान लिया।
तारे नक्षत्र की दिशा जब बदले ,
राशि चक्र तब बदले भाग्य।
अटल रहा जो धर्म मार्ग पर,
ध्रुव सा चमके उनका सौभाग्य।
तारों की है अपनी भाषा,
समझना वश की बात नहीं।
मुक्त गगन से हमें यह कहता,
रहो सदा झिलमिल अपनो संग,
संकीर्ण हृदय जज्बात नहीं।
मौलिक एवं स्वरचित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १४ /०८/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201