नफा-नुकसान
“अरे अम्मा ये अमिया कैसे दीं?” एक लड़के ने बूढ़ी की टोकरी से एक आमिया उठाकर देखते हुए पूछा।
“तीस रूपए की एक किलो, लेलो बेटा अच्छी आमिया हैं।” बूढ़ी ने आशा भरी आँखों से लड़के को देखते हुए कहा।
“क्यों लूट मचा रही हो अम्मा! कल आँधी में इतनी आमिया गिरी हैं कि कोई पन्द्रह-बीस में भी नहीं ले रहा, ऐसे भी अभी इनका बस चटनी या अचार ही बन सकता है।” उस लड़के ने आमिया वापस रखते हुए कहा।
“हाँ बेटा”लूट ही तो मच गई इस आँधी में।
किसान से पूरे पाँच हज़ार में ये एक पेड़ रखवाली को लिया था, सोचा था पाँच के दस हो जाएंगे तीन महीने में लेकिन ऐसे ही आँधी आती रही तो लगता है किसान के पाँच देने के लिए भी खुद को बेचना पड़ेगा।” बूढ़ी ने आँख में आँसू भरकर उदास होते हुए कहा।
लड़के के जाने के बाद बूढ़ी की सात साल की पोती जो सारी बात ध्यान से सुन रही थी,चहकते हुए बोली-
“दादी अब जब इनका अचार ही बन सकता है तो क्यों ना हैं इनका अचार बनाकर बेचें, ऐसे भी मेरी दादी जैसा अचार कोई नहीं बना सकता।”
“ठीक कहती है मुन्नी, चल।” बूढ़ी टोकरी पकड़ते हुए बोली।
बच्ची की बात सुनकर बूढ़ी की उदास आँखों में चमक आ गयी।वह टोकरी उठाकर आत्मविश्वास भरे कदमों से घर की ओर लौट पड़ी।
चक्षिमा भारद्वाज “खुशी”
ठाकुरद्वारा,मुरादाबाद