नफ़रत
नफ़रत
नफ़रत सी जागी है मन में
हैवानों के हित भारी है।
जिसकी हत्या की निर्मम ने
जीवन दाता वह नारी है।
कैसा है यह कानून हमारा
पापी अवसर पाते हैं जाते।
रोज नया वे कांड हैं करते
फिर भी उनके हाथ न आते।
फांसी पर लटका दो उसको
जो नीच अधम दुराचारी है।
हत्या की है निर्मम समक्ष ही
फिर भी वे सबूत ढूंढ़ रहे हैं।
साक्ष्य सभी मौजूद मिले पर
वह नहीं सभी पर्याप्त कहे हैं।
फिर जायेगे वे छूट एक दिन
जो नीच अधम दुराचारी है।
कब तक ऐसा होता जाएगा
कब तक तुम उसे बचाओगे।
यह नारी तेरी भी जननी है
कब बात समझ यह पाओगे।
जिसकी हत्या की निर्मम ने
जीवन दाता वह नारी है।
डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली