“नफरत बांटने वालों”
नफ़रत बांटने वालों,
ये मुहब्बत की रुसवाई है,
चलो देख लेते है ,
कितनों पर बात आई है।
होठों पर चाह, मन में
नफरत की गहराई है,
तू जिसे अपना समझ रहा,
वो किसी और की कमाई है।
जिसे हासिल करने में,
ता उम्र गवाई है,
मंजिल पास होकर भी जिसे,
किस्मत ने ठुकराई है।
तेरा मान रखने के लिए जिसने,
तुझ पर जान लुटाई है,
अपने ही रास्ते में,
कांटे खुद बिछाई है।
खा के और धोखा,
तब समझ आई है,
जिसके प्रति गर्व था मन में,
वो संग नहीं, बस परछाई है।
राकेश चौरसिया