“नफरत की दुनिया का इंसान “
नफरत की इस दुनिया में
अगर तुम सब में कमी निकालते हो
तो तुम इंसान हो!
जल जाता है तुम्हारा तन-बदन
अगर किसी की कामयाबी से
तो तुम इंसान हो !
लग जाती है सीने में आग कि
फलाना मुझसे आगे क्यू??
तो तुम इंसान हो !!
हर रोज किसी को नीचा दिखा लेते हो ,
हासिल ये मुकाम की जद्दोजहद में
तो तुम इंसान हो !!
बिगड़े किसी का काम खुदगर्जी के खातिर
काम बिगाड़ने में माहिर हो तो ,
तो तुम इंसान हो !!
किसी पर टूटे मुसीबत के पहाड़
और तुम फिर भी खिलखिलाकर हस लेते हो
तो तुम इंसान हो !!
मेरे मुंह पर मेरी
तेरे मुंह पर तेरी
शायराना अंदाज से कर जाते हो
तो तुम इंसान हो
आंखों में आ जाय बेशर्मी के बाल
फिर भी चहका लेते हो खुद के गाल
तो तुम इंसान हो !!
गर दे लेते हो धोखा
खुदगर्जी की खातिर
अपने दिल अजीज को
तो तुम इंसान हो !!
इस रंग बदलती दुनिया में
गिरगिटिया रंग बदल लेते हो
तुम इंसान हो !!
थोड़ा करके ज्यादा करने का दिखावा करना
फ़िर स्वयं की झूठी तारीफों के पुल बांध लेते हो
तो तुम इंसान हो !!
हसरत है गर आसमान छूने की
किसी की कामयाबी चुरा लेते हो तो
तुम इंसान हो!!
युक्ति वार्ष्णेय “सरला”
मुरादाबाद!