नफरत की आग
नफरत की आग
नफरत की आग लगा हवा दे रहे हैं जो लोग,
नहीं जानते कितना खतरनाक है यह प्रयोग ।
देश जल रहा है हर तरफ नफरत की आग में
अब फूल नही खिलते यहां वतन के बाग में ।
अहंकार सोचने नहीं देता दुष्परिणामों को,
नहीं देखते अपने गिर जाने के आयामों को ।
खुद उसी आग की जद में हैं वो नहीं मानते ,
हवा दिशा कब बदल जाएगी नहीं जानते ।
हवा का रुख सदा एकसा नहीं रहता,
चोट देने से पहले वक्त सावधान नहीं कहता।
शायद वो तभी समझेंगे और पछतायेंगे,
जब अपनी ही लगाई आग में जल जाएंगे ।