नफरतों के बीज _____ नहीं चाहिए — गजल/ गीतिका
नफरत ही फितरत हो किसी की।
शराफत को वहां जाना नहीं चाहिए।।
प्रीत की रीत निभाए जो दिन रात।
उस महफिल से उठना नहीं चाहिए।।
अपना कहकर सपना जो दिखाए।
साकार होने तक रुकना ही चाहिए।।
दिलासा पर दिलासा ही देता रहे जो बार – बार।
उस दरबार में ज्यादा ठहरना नहीं चाहिए।।
दिल की आंखो से पहचानना जमाने को।
बिना समझे सहज ही भरोसा जताना नहीं चाहिए।।
जिंदगी के दिन चार,हो जिसमें प्यार ही प्यार।
नफरतों के बीज कभी उगना नहीं चाहिए।।
________राजेश व्यास अनुनय________