थोड़ा सच बोलके देखो,हाँ, ज़रा सच बोलके देखो,
सुरसा-सी नित बढ़ रही, लालच-वृत्ति दुरंत।
दीपों की माला
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मासुमियत - बेटी हूँ मैं।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
हिन्दी दोहा बिषय-ठसक
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
रक्तदान पर कुंडलिया
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
चांद पर पहुंचे बधाई, ये बताओ तो।
*नारी कब पीछे रही, नर से लेती होड़ (कुंडलिया)*
कहते हो इश्क़ में कुछ पाया नहीं।
मेरी हर कविता में सिर्फ तुम्हरा ही जिक्र है,
हरे हैं ज़ख़्म सारे सब्र थोड़ा और कर ले दिल
पिता' शब्द है जीवन दर्शन,माँ जीवन का सार,