नन्ही सी चिड़ियाँ
चीखी थी, चिल्लाई थी,
उस दिन वह बहुत घबराई थी।
जिस दिन घर ध्वस्त हुआ था,
तिनका-तिनका बिखरा पड़ा था।
बड़ी मेहनत करके घर अपना सजाई थी,
दूर देश से तिनका इकट्ठा कर लाई थी।
चीखी थी, चिल्लाई थी,
उस दिन वह बहुत घबराई थी।
बच्चें उसके गायब थे,
सर से पाँव तलक घायल थें,
कुछ हाथों में पत्थर,
कुछ में कमान थे।
यह नजारा देख दिल दहल गया उसका,
कि अभी-अभी एक बच्चा गुजर गया उसका।
हाथ पटकी, पाँव पटकी, सर पर चोट आयी थी।
चीखी थी, चिल्लाई थी,
उस दिन वह बहुत घबराई थी।
दर्द जाने कौन उसका भला,
जो अकथनीय ठोकरे पाई थी।
कुछ कर न सकी लाचारी चिड़ियाँ,
क्या गलती थी उसकी,
जो सजा दर्दनाक पाई थी।
वर्षों का अतीत अभी भी ताजा है,
एक – एक करके जब बच्चे आपने गवाई थी।
चीखी थी, चिल्लाई थी,
उस दिन वह बहुत घबराई थी।
दया करो कोई तो आकर थाम लो,
जीवित नही राह पाऊँगी ज्यादा दिन,
मेरे नवजात को संभाल लो।
मेरा भी परिवार है,
मैं भी खुश रहने की हकदार हूँ।
हे! मानव खत्म करो अत्याचार अपना,
मैं भी माँ की अवतार हूँ।
निस्संतान मर गई उस दिन,
जब गला फाड़ कर आवाज़ लगाई थी।
चीखी थी, चिल्लाई थी,
उस दिन वह बहुत घबराई थी।
-Rishikant Rao Shikhare
दिनांक- 11-05-2019
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