नन्हा मुन्ना प्यारा बचपन
नन्हा मुन्ना प्यारा बचपन
सबसे से सुंदर लगता था,
मां की गोद की सबसे बढ़कर,
और नहीं कुछ जंचता था,
पिछवाड़े खेला करते हम
नित उठ आंख मिचोली,
मिश्री सी मीथी लगती
चूंचूं चिड़िया की बोली,
पीपल तरू था साथी अपना,
अपने पास बुलाता था,
लंबी-लंबी शाखाओं से
झूला खूब झुलाता था,
पगडंडी पर दौड़ लगाते
हम सब साथी मिलकर,
चहुँ दिशाएं भी आ जातीं
बातें करती हंसकर,
अच्छा लगता था हमको
तितली के पंख पकड़ना,
थक कर रहते चूर मगर
टट्टू पर फिर भी चढ़ना,
पापा मेरे मुझे घुमाते
पकड़ हाथ की अंगुली,
मनवा लेते बात वही
जिसकी जिद्द हमने कर ली,
दादी अम्मा हमें सुनाती
परियों वाली कहानी,
सुनते सुनते हम सो जाते
आती नींद सुहानी,
मेरी मां जी बड़े प्यार से
मुझको पास बुलाती,
फूल से कोमल हाथों से
फिर खाना खूब खिलाती,
मुझको ये बचपन की बातें
याद अभी भी आती,
रहते थे हम ऐसे, जैसे
मैं दीपक, माॅ बाती।
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