नन्हा बीज
नन्हा बीज
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मैं हूँ बीज ,
नन्हा सा ,
चेतना के बीज जड़वत रुप में ,
पर मुझमें भावनाओं के सुकोमल रंग-बिरंगे पुष्प,
खिलेंगे या नहीं ये मुझे पता नहीं ,
नवांकुर प्यार के प्रस्फुटित होंगे या फिर ,
सुषुप्तावस्था में पड़ा रहूँ ढेरो दिनों तक ,
ये मुझे पता नहीं ।
माँ वसुंधरा की गोद में सोने का मौका मिले यदि ,
तो ही मैं जगता हूँ ,
कब मिलेगा जल,मिट्टी और वायु का संग मुझको ,
कब मिलेगी रवि किरणों की आभा ,
ये मुझे पता नहीं।
अंकुरित होकर पौधा बनना ,
किस्मत में लिखा भी या नहीं ,
ये भी मुझे पता नहीं ।
चुन लिया जाऊँ खग मुख में ग्रास बनकर ,
या अन्य प्राणियों का आहार बन अस्तित्वहीन हो जाऊँ ,
ये मुझे पता नहीं।
कोंपलें खिलेगी मुझमें और फिर ,
शाखाओं और टहनियों पर ,
भावनाओं के फूल बनकर ,
सबके मन को आह्लादित कर सकूँ यदि ,
तो ही अंतिम परिणिति फल के रुप में ,
फिर संतति बीज सृजित कर पाने का अवसर ,
मिल सकता है मुझे।
अन्यथा अस्तित्वहीन हो जाना ही ,
मेरी नियति है…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०३ /०५ /२०२२
वैशाख , शुक्ल पक्ष, तृतीया ,मंगलवार ।
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201