ननकू की वीरता
बाल कविता —
#ननकू_की_वीरता
सुनो बच्चो, तुम्हें मैं बताऊँ ।
ननकू की मैं कथा सुनाऊँ ।।
ननकू था एक वीर बहादुर ।
समझदार था बालक चातुर ।।
अपनी माँ के संग रहता था ।
दिनभर बहना से लड़ता था ।।
बहना भी बहुत चिढ़ाती थी ।
उसको भी बड़ा छकाती थी ।।
काम से जी चुराता रहता ।
सपने रोज सजाता रहता ।।
स्कूल नहीं वह जाता था ।
पढ़ने से वह घबड़ाता था ।।
बड़े बड़ों की बातें करता ।
बड़ा होने की आहें भरता ।।
दिया भगवन ने एक मौका ।
लगाया उसने फिर चौका ।।
बरसात में गाँव जब डूबा ।
घर में पड़ा था बाबा बूढ़ा ।।
दूर से घर को दौड़ आया ।
हाली-हाली घर को पाया ।।
अवसर नहीं गँवाना चाहा ।
झट अपना दिमाग थाहा ।।
पानी आँगन में जब आया ।
बाबा को वह गोद उठाया ।।
उनको छान पे झट चढ़ाया ।
मोटा रस्सा छान पर पाया ।।
बँधन छान के काटे झटपट ।
चढ़ गया वह ऊपर सरपट ।।
डूब गया था अब पूरा गाँव ।
कहीं नहीं था एक भी ठाँव ।।
बह गया जो पानी में छप्पर ।
दादा-पोता छप्पर के ऊपर ।।
ननकू था अब बहुत दु:खी ।
तभी दिमाग में उपाय सूझी ।।
बहते बहते धारा संग चेता ।
आगे उसने पटना पुल देखा ।।
मोटा रस्सा झप्पर में बाँधा ।
शेष रस्से को पुल पर फेंका ।।
खड़े लोगों ने रस्सा पकड़ा ।
छप्पर जाकर पुल से जकड़ा ।।
दादा-पोते के तब प्राण बचे ।
अखबारों में बड़े शोर मचे ।।
जब बहादुरी की खबर छपी ।
मुख पर ननकू के आई हँसी ।।
उसे वीरता का ईनाम मिला ।
उसका मान-सम्मान खिला ।।
माता-पिता बड़े ही खुश हुए ।
उसको तो ढेरों आशीष दिए ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
22. 09. 2018