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9 Jul 2017 · 1 min read

नदी सी बहती मैं….

मैं वेग हूं जलधारा की,
बहती चली सतह पर।
पाप-पुण्य का भेद किये बिना,
सब जल में समाहित करती चली।
दिशा के प्रवाह में प्रवाहित,
उद्धेलित लहरों संग।
लक्ष्य को साधे रही,
जल के उफानों में भी।
मन शांत कर,
बहती चली।
धैर्य आहत होने लगता,
जब राह दिशा भटकाती।
इन उद्धेलित लहरों को,
उफानों से बचती-बचाती।
बहती निश्चित मंजिल की ओर,
सागर से मिलने की अभिलाषा।
करती जलधारा को आतुर,
जलधारा की आतुर लहरें।
जब मिल बैठी भवसागर में,
सागर की अनंत गहराई छूकर।
शांत हुई मन की उद्धेलित लहरें,
मन अब समझ गया,
ज्ञान की गहराई को।
मुझ जैसी अनगिनत नदियां,
पाती हैं पूर्णता सागर की गहराई में।
मैं वेग हूं जलधारा की,
बहती चली सतह पर।

कमला शर्मा

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 674 Views
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