नदी के किनारे
नदी के दो किनारे की तरह थे हम दोनों
साथ साथ चलते हुए भी
मिलन की कोई आस नही थी,
न स्पर्श का कोई आभास,
न पाने की कोई जिद,
न खोने का कोई डर
फिर भी प्रेम में थे हम दोनों
एक खूबसूरत सा एहसास।
नदी के दो किनारों की तरह
चलते ही जा रहे थे हम दोनों
अपनी ही धुन में मगन
अपने राह की हर उलझनों को सुलझाते
बस देखकर एक दूजे को
था सुकून का एहसास।
चंद गुफ्तगू और फिर मौन
पावन थी हमारी भावनाएं।
और यही था हमारा अनमोल प्रेम।