नदी की बूंद
है नदियों क्या प्रभाव, हम सबको सभी विदित है।
हिमखंडो की शिहरन सी, अविरल भाव निहित है।।
हिम से बूंदे जलधारा बन, अविराम यात्रा करती है।
पर्वत मालाओं से लड़ती, पर आगे बढ़ती रहती हैं।।
लहराती बलखाती चलती, कलकल सा संगीत लिए।
जड़ चेतन को खुशियां दूंगी, ऐसा मन में भाव लिए।।
बूंद बूंद लालायित इनका, खुद को स्वयं मिटाने को।
मतवाली सी लड़ती रहती, दोनों छोरों पर जाने को।।
काम आ सके औरों के, इनकी अभिलाषा है रहती।
मझधारों की बूंदे रहना, नहीं ये आशा है करती।।
जैसे कोई कुशल सिपाही, वीरगति में खुश रहता है।
उसी भांति नदी बूंद भी, मिटजाने में खुश रहता है।।
मिट जाती जो सृजन हेतु, मीठी बूंदे कहलाती है।
मिल समुद्र मजधार की बूंदे, खुद खारा हो जाती है।।
कहती है नदियों की बूंदे, तुम भी चुनों किनारे को।
सृजन करो “संजय” खुद से, यूं ढूंढो नहीं सहारे को।।