नदी का विलाप
नदी का विलाप कब किसने सुना।
बंधती रही देह उसकी कंकरीटों से,
कसमसाती रही बिलखती रही,
आखिर कितनी यातनाएं सहे वो!
उसको भी अधिकारधिकार है जीने का,
अगर जीने की छटपटाहट में,
तुम्हारे महल हिल गये तो,
ये उसका कुसूर कैसे हुआ?
लेखिका
गोदाम्बरी नेगी