नदी अश्क़ों के’ धारे हैं ।
अज़ब इंसाफ़ क़ुदरत का, बने हम दो किनारे हैं,
इधर हम हैं उधर तुम हो, नदी अश्क़ों के’ धारे हैं ।
इबादत में झुके हम हुस्न की रोया जहां छोड़ा ।
गया ले चाँद कोई हाथ में जलते सितारे हैं ।
ज़मी रोयी गगन रोया रहम उनको नहीं आया,
तमाशा देखते हँसकर खड़े अब लोग सारे हैं ।
ख़ुदा कैसा सितम ढाया जगाकर प्यार को दिल में,
मिलेगा चाँद पूनम में अमा से दिन गुज़ारे हैं ।
सदी बदलीं रहीं बदली किरण इक भी नहीं झिटकी,
करे ‘अंजान’ क्या बोलो, बरसते मेघ खारे हैं ।