नदिया रोये….
नदिया रोए बिलखे भाखर ।
कौन किसे समझाए आकर ।
सोच रहे हैं मांझी सारे
रखदे आँधी नौका लाकर l
देता है जग खुशियाँ लेकिन
दो में से दो रोज घटाकर l
बंध नदारद थे गीतों से
करता क्या वह मुखड़ा गाकर l
होने को तो मालिक हूँ मैं
लेकिन मुझसे अच्छे चाकर l
मँहगाई से जीत गई वह
लेकिन पर अपनी लाज गँवाकर l
देखो दिन कितने हँसते हैं
तिनके माचिस गाँव बसाकर l
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अशोक दीप
जयपुर