नटनागर
हे नटनागर !
तूने फोड़ी सबकी गागर
हमको थल में रख कर
खुद रहते क्षीर सागर ,
इस थल में बड़ा कोप है
चारो ओर अधर्म का प्रकोप है ,
हे नटवर ! फिर हमको तरो
मोहिनी रूप ले कर
कलयुगी असुरों को बस में करो ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/02/16 )