नज्म-ए-आशिकी
जब पिघल रहे हो जज्बात तो फिर ,
दिल मे धुंआ क्यू ना करु ।
सर-ए-महफ़िल मे अक्सर निगाहें उन्हें ढूढ़ती है,
जो कभी नजरों से उतरे ही नही ।
जिसके लिए तन्हाई से रुसवाई करी ,
अक्सर वो भी मिल जाते हैं भीड़ के इंतजार मे।
इतने पर भी इश्क उस पर आता है जिसकी नजर मे हमारा नम्बर बहुत बाद आता है ।
रिश्तों के भंवर जाल में डूब कभी तो हमारा नम्बर आता है ,
इस बात से ही मैं हूँ खुश बहुत ।।