नज्म-इन्तजार करती हूँ।
नज़्म-इंतजार करती हूँ।
गलत को गलत कहने का दम रखती हूँ,
पड़ जाऊँगी अकेले,यह सोचकर न डरती हूँ।
क्यूँ बर्दाश्त करूँ बेवजह गलत को हरदम,
जब सही और गलत का फर्क समझती हूँ।
तोड़ नहीं सकता कोई भी मेरे हौसलों को,
हर रोज यहाँ अंगारों पर बेखौफ गुजरती हूँ।
बेगुनाहों को गुनहगार बनाने की रीत होगी यहाँ,
ख़ुदा के दर पर सही फैसले का इंतज़ार करती हूँ।
घबराती नहीं हूँ इंसानी ताकतों से कभी भी,
ईश्वरीय शक्ति पर असीम विश्वास रखती हूँ।
By:Dr Swati Gupta