नज़्म
की मोहब्बत ने बहुत तरसाया,
ना जी पाया हूं ना कभी मर पाया।
दर्द जो मिले सीने में ना कम थे,
कभी हंस ना हमेशा आपने रूलाया ।
ज़ख्म से भरा हुआ हूं मैं क्या बताऊं,
तेरी मीठी मीठी बातों को तन्हाया ।
तेरी झील सी गहरी आंखे आज समंदर है,
इन्होंने न कभी डुबोया ना कभी तैराया।
जब चली गई छोड़कर बेसहारा हो गया,
था कोई अपना अब सब हो गया पराया ।
ना इश्क का इजहार हुआ तेरे साथ,
चाहा जिसने था उसी ने था डुबोया
हर जगह हर वक्त तू रहती ख्वाब में,
तेरे इन ख्वाबों के साथ में जिन्दा पाया।
फूल पत्तों के भीतर खुशबू तेरे प्यार की,
खान मनजीत ने खुशबू को बेकरार बताया।
खान मनजीत भावड़िया मजीद
गांव भावड़ तहसील गोहाना सोनीपत हरियाणा