नज़्म
मुहब्बत में माही से होकर जुदा
ये रुह-ए-रवां फिर किधर जाएगी।
समय चलता है, चलता रहेगा सदा
दुखों की घड़ी भी बदल जाएगी।
ख़ुद मुझे भी नहीं मालूम है मंज़िल मेरी
ज़िद पे आई,नीलम कुछ तो कर जाएगी।
जाने वाले से न पूछो वो किधर जाएगा
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगी।
चराग़-ए-उम्मीद नीलम तू जला
किस्मत तेरी भी निखर जाएगी।
ये माना जीस्त है दरिया-ए-आग मगर
कान्हा की कृपा से तू तर जाएगी ।
कोई मंज़िल नहीं बाक़ी है मुसाफ़िर के लिए
कारवां जो चला, मंजिल भी आएगी।
ये माना अभी रुत जुदाई की है,
रुत बसंती भी आँगन ठहर जाएगी।
संवरेगी तकदीर एक दिन तेरी नीलम
हर खुशी तेरे दामन में भर जाएगी।
नीलम शर्मा ✍️