Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Oct 2023 · 2 min read

नज़्म

वही एक दुःख भरी शायरी,
जिसे सुनाकर रोते थे तुम।
जिसको सुनकर रोते थे हम।
बहुत दिनों से सुनी नहीं है
नहीं! आँख में नमी नहीं है
तुम्हें याद है! तुमने आखिर
कब मुझसे “वो नज़्म” कही थी ?
वही नज़्म, जिसमें कहता है
शायर, “कुन ही काफी नई!
देखभाल भी कर बंदों की।”
या फिर गीत “भरत भूषण” का,
जिसमेें “बाँह चाह का अंतर”
आँख तुम्हारी भर देता था।
और, “अमृता की वो कविता
जिसमें फिर मिलने का दावा…”
कैनवास पर किसी रेख सी,
मेरे मन में खींची हुई है।

लगभग समसामायिक शायर
तुमको ऐसे रटे हुए थे,
जैसे कोयल, “पंचम सरगम।”
“शिव बटालवी” का इंटरव्यू,
हमने कितनी बार सुना था!
तुम्हें याद है ?
आँखें मूंदे, वो ऊँचा स्वर!
“रंगा दा हि नां तस्वीरा है।”
वो भोला चेहरा, मेरा कहना-
“शिव मेरे प्रेमी होते, यदि
तब होती मैं, या अब होते वो।”
और तुम्हारा हँसकर कहना,
“मैं ही शिव हूँ! पुनर्जनम है।”
तुम्हें याद है ?

देर रात “चकमक, “सारंगा” प्रेम कहानी
तुमने मुझे सुनाकर बारिश करवाई थी।
मन भीगा था
“धर्मवीर के चंदन” से, हम “ओशो” तक
कैसे जाते थे, तुम्हें याद है ?
“कितना आत्ममुग्ध रहती हो!”
तुम, मुझसे अक्सर कहते थे।
और कभी हम दोनों
मिलकर अपनी ही कमियाँ गिनते थे।
वो सब कितना सहज सुखद था
बोलो! था न ?

ये सब जो मैं याद कर रही,
याद तुम्हें भी आता होगा !
देर रात मेरे नंबर पर,
ध्यान तुम्हारा जाता होगा!
गर, हाँ! तो फिर फोन लगाओ।
अब भी रात जागती हूँ मैं।
तुम ही छलके हो आँखों से,
जब भी, कुछ भी पढ़ती हूँ मैं।
तुम कहते थे “दवा किताबें।”
मैं कहती “संवाद शहद हैं।”
तुम्हें याद है ?

अब, टेबल पर कई किताबें,
और जुबान पर कड़वापन है।
कहने को हम अलग हो गए,
मन में कितना अपनापन है।
अब तो देर रात मैं अक्सर,
“मैं” से “तुम” भी हो जाती हूँ।
खुद ही खुद को सुन लेती हूँ।
खुद ही खुद से बतियाती हूँ।
इस एकल अभिनय नाटक का
यूँ तो अंत सुखद रहता है।
लेकिन खुद से संवादों में,
उतना शहद नहीं मिलता है।
यूँ तो हम अब एक नहीं है।
दुनिया हमको को दो गिनती है।
जिसे दिया है सबने मिलकर,
इक तस्वीर साथ रहती है।
वो तस्वीर बदन छूती है,
मैं भी केवल तन होती हूँ।
रात गए रौशनी ढले जब,
तब उसके रंग छुप जाते हैं।
और मेरी आँखों के भीतर,
रंग तुम्हारे मुस्काते हैं।
उस पल तुमको दोहराती हूँ,
फिर मैं कविता हो जाती हूँ।

सोच रहीं हूँ, अहम छोड़कर
तुमको अगर मना पाती, तो ?
सोच रहीं हूँ, वहम छोड़कर
यदि तुम मुझको सुन लेते, तो ?
क्या तुम भी ये सोच रहे हो ?
क्या अब भी हूँ याद तुम्हें मैं…. ?

वही एक दुःख भरी कहानी…..!
शिवा अवस्थी

2 Likes · 247 Views

You may also like these posts

चाह थी आप से प्रेम मिलता रहे, पर यहांँ जो मिला वह अलौकिक रहा
चाह थी आप से प्रेम मिलता रहे, पर यहांँ जो मिला वह अलौकिक रहा
संजीव शुक्ल 'सचिन'
" चाहत "
Dr. Kishan tandon kranti
सौदा
सौदा
ओनिका सेतिया 'अनु '
देश का वामपंथ
देश का वामपंथ
विजय कुमार अग्रवाल
Exam Stress
Exam Stress
Tushar Jagawat
मुझे इंतजार है , इंतजार खत्म होने का
मुझे इंतजार है , इंतजार खत्म होने का
Karuna Goswami
ध्यान-रूप स्वरुप में जिनके, चिंतन चलता निरंतर;
ध्यान-रूप स्वरुप में जिनके, चिंतन चलता निरंतर;
manjula chauhan
जय माता दी ।
जय माता दी ।
Anil Mishra Prahari
सीप से मोती चाहिए तो
सीप से मोती चाहिए तो
Harminder Kaur
ମଣିଷ ଠାରୁ ଅଧିକ
ମଣିଷ ଠାରୁ ଅଧିକ
Otteri Selvakumar
सुंदर पंक्ति
सुंदर पंक्ति
Rahul Singh
व्यथा हमारी दब जाती हैं, राजनीति के वारों
व्यथा हमारी दब जाती हैं, राजनीति के वारों
Er.Navaneet R Shandily
सफर है! रात आएगी
सफर है! रात आएगी
Saransh Singh 'Priyam'
चीखें अपने मौन की
चीखें अपने मौन की
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
*श्री महेश राही जी (श्रद्धाँजलि/गीतिका)*
*श्री महेश राही जी (श्रद्धाँजलि/गीतिका)*
Ravi Prakash
अ आ
अ आ
*प्रणय*
श्रृंगार
श्रृंगार
Neelam Sharma
देव अब जो करना निर्माण।
देव अब जो करना निर्माण।
लक्ष्मी सिंह
अन्नदाता किसान
अन्नदाता किसान
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
प्रेम
प्रेम
हिमांशु Kulshrestha
मनोहन
मनोहन
Seema gupta,Alwar
सत्य छिपकर तू कहां बैठा है।
सत्य छिपकर तू कहां बैठा है।
Taj Mohammad
क्रिसमस डे
क्रिसमस डे
Sudhir srivastava
जिसे चाहा था खुद से भी जादा उसी को पा ना सका ।
जिसे चाहा था खुद से भी जादा उसी को पा ना सका ।
Nitesh Chauhan
मेरे जीवन में सबसे
मेरे जीवन में सबसे
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
Tum toote ho itne aik rishte ke toot jaane par
Tum toote ho itne aik rishte ke toot jaane par
HEBA
गाडगे पुण्यतिथि
गाडगे पुण्यतिथि
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
4673.*पूर्णिका*
4673.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
इस संसार मे
इस संसार मे
स्वतंत्र ललिता मन्नू
शबाब देखिये महफ़िल में भी अफताब लगते ।
शबाब देखिये महफ़िल में भी अफताब लगते ।
Phool gufran
Loading...