नज़्म – “तेरी आँखें”
“तेरी आँखें”
यार तेरी आँखों की
तस्वीर बनाना मुश्क़िल है
और फिर उस पर कोई
ग़ज़ल सुनाना मुश्क़िल है
कोई कहता है शराब सी
नशीली है तेरी आँखें
कोई कहता है साफ पानी सी
नीली है तेरी आँखें
अरे मुझसे पूछो उसकी आँखों में
कितनी गहराई हैं
जैसे कोई सुरंग हैं
जैसे कोई खाई हैं
अगर देखी होती तेरी आँखें
तो इतने मकबूल नहीं होते
न्यूटन के यह सारे लॉ
ये कोई रूल नहीं होते
किरचौफ के वो रूल,
वो थ्योरी ये बताती हैं
कैसे सारी आँखें,
तेरी आँखों पर रुक जाती हैं
आर्यभट्ट ने जब बताया था
यह प्रथ्वी गोल है
इस बात में तेरी आँखों का
बेहतरीन रोल है
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल
इस बात को दर्शाता हैं
तेरी आँखों में है धन आवेश
जिसमें ये ऋणावेश जाता हैं
एक बात बताओ ये पीरियोडिक टेबल
क्यों पढ़ते हो यारों?
उसकी आँखें ही रंगीन है
और उसमें साल्ट हैं हजारों
ख़ुदा तेरी आँखें अगर
बहुत पहले ही बना देता
तो रामानुजन सारे फॉर्मूले
तेरी आँखों में ही बता देता
तेरी आँखों में ही खोये रहते
ये दुनिया ईज़ाद करने वाले
ख़ामोश देखते ही रहते
ये नेता बात करने वाले
इसके आगे कैसे लिखूं ?
वो सामने आ बैठी है
मैं भूल गया ये इंदौर है ?
या लखनऊ है या अमेठी हैं?
हाँ याद आ गया तेरी आँखों की
तस्वीर बनाना मुश्क़िल हैं
और फिर उस पर कोई
गज़ल सुनाना मुश्क़िल हैं