नज़ारे नहीं नज़रिया बदल रहा हूँ
नज़ारे नहीं नज़रिया बदल रहा हूँ
मेरा देश नहीं मैं बदल रहा हूँ
नज़ारे नहीं नज़रिया बदल रहा हूँ
मैंने भींच रखे थे मुट्ठी में चाँद सितारे
अब जाके धीरे से मुट्ठी खोल रहा हूँ
सूरज मैं अब तुझको तकने लगा हूँ
मिट्टी की गंध को समझने लगा हूँ
अब चाँदनी से भी उलझने लगा हूँ
रोशनी थोड़ी सही पर चखने लगा हूँ
चिड़ियों को उड़ते निहारने लगा हूँ
पोखर से मिट्टी निकालने लगा हूँ
मैं पेस्ट को दंतमन में बदलने लगा हूँ
योग से अंतर्मन को हरने लगा हूँ
भाई को अब फिर मैं हँसाने लगा हूँ
अम्माँ की गोदी में मैं समाने लगा हूँ
बच्चों को अब और ज़्यादा समझने लगा हूँ
तुम्हें सच,दो सौ फ़ीसदी प्यार करने लगा हूँ
क्याकहूँ ? किरणो से अब मैं छनने लगा हूँ
भीतर से मैं अब यतीश निखरने लगा हूँ
हौले हौले ही सही ,अंदर पिघलने लगा हूँ
हाँ सच में मैं रोज़ थोड़ा बदलने लगा हूँ
कोंपलों की मुलायमियत और फूलों कीसुगन्ध
इन सब से आनंद भाव भरने लगा हूँ
पूरवायी के झोंकों में मैं उड़ने लगा हूँ
मैं ख़ुश्बू को फिर से समझने लगा हूँ
शजर बदलते हैं रंग,सब्ज़ होते हैं नूरानी
ये सारे मंज़र यक़ीन जाने ,अब तकने लगा हूँ
रहमत भी होती है मुझको अता रब
नियामत को तेरी मैं चखने लगा हूँ
डमरू पे शंकर अब थिरकने लगा हूँ
हम्द तेरे दिल से अब पढ़ने लगा हूँ
मौला, तुझसे खुल के बातें करने लगा हूँ
मैं नज़र नहीं अब नज़रिया बदलने लगा हूँ
हम्द= ईश्वर की प्रार्थना
नियामत-ईश्वर प्रदत्त वैभव ,धन
शजर-पेड़
सब्ज़-हरापन हरा भरा
यतीश-११/११/२०१७