नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
जम़ीं बंजर में गुल कोई खिला दो तो तुम्हें जानें/1
यहाँ बातें बनाने से उजाला हो नहीं सकता
अँधेरे में मशालें तुम जला दो तो तुम्हें जानें/2
आर. एस. ‘प्रीतम’
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
जम़ीं बंजर में गुल कोई खिला दो तो तुम्हें जानें/1
यहाँ बातें बनाने से उजाला हो नहीं सकता
अँधेरे में मशालें तुम जला दो तो तुम्हें जानें/2
आर. एस. ‘प्रीतम’