नज़र बता रही है इसे उल्फ़त रही है …….
नज़र बता रही है इसे उल्फ़त रही है
किस तरह मजबूर दिल की हालत रही है
दर्द-ओ-ग़म कहीं सीने में दफ़न करके
खुश- खुश रहने की मेरी आदत रही है
टूटकर बिखर जाता तो फिर ना टूटता
क्यूँ दिल में जुड़ने की ताक़त रही है
हैं आज भी चाँद – तारे आस्माँ पर
दुनियां में तोड़ने की चाहत रही है
तू हासिल नहीं मुझे मगर फिर भी तेरे
आसपास होने से बड़ी राहत रही है
भाग-दौड़ ज़माने की तेज़ धूप में भी
तेरी याद इस दिल में सलामत रही है
कौन झुकता है’सरु’यहाँ किसी सिजदे में
मोहब्बत ही सदियों से इबादत रही है