नज़र आये हैं
खुद न आये कभी न खबर लाये हैं
बाद मुद्दत के मुझको नज़र आये हैं
कैसे कह दूं कि मुझको मिला कुछ नहीं
यार यारी से बढ़ के सदा पाये हैं
वक्त गुज़रा रही तुझ मे खोयी कहीं
संग सांसों मे कुछ तो बहा लाये हैं
हम दीवाने रहे जाने किसके लिये
वो वसीयत दिलों की करा आये हैं
ख्वाब दर ख्वाब नीदों मे आते रहे
और कहते हैं हम याद कब आये हैं
बेरहम इश्क की आंधियां कम न थी
उस पे ग़महोश ये जलज़ला लाये हैं
प्रियंका मिश्रा_प्रिया
अलीगढ़