नज़र अपनी अपनी
सभी के अलग-अलग ढंग, अलग-अलग चाल है,
नज़र अपनी-अपनी है, अपना-अपना ख्याल है।
कोई यथार्थ पर यकीं करता है तो कोई सपने पर,
कोई दूसरे पर यकीं करता है तो कोई अपने पर,
कोई किसी से जुदा नहीं सबका यही बस हाल है,
नज़र अपनी-अपनी है, अपना-अपना ख्याल है।
कोई कर्म पर यकीं करता है तो कोई किस्मत पर,
कोई मुफ्त पर यकीं करता है तो कोई मेहनत पर,
अपने आप में व्यस्त हैं,कोई करता नहीं सवाल है,
नज़र अपनी-अपनी है, अपना-अपना ख्याल है।
कोई राम पर यकीं करता है तो कोई रहमान पर,
कोई नियति पर यकीं करता है तो कोई ईमान पर,
सभी का अपना मियाद है सबका अपना काल है,
नज़र अपनी-अपनी है, अपना-अपना ख्याल है।
सभी के अलग-अलग ढंग, अलग-अलग चाल है,
नज़र अपनी-अपनी है, अपना-अपना ख्याल है।
?? मधुकर ??
(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार©® सुरक्षित)
अनिल प्रसाद सिन्हा ‘मधुकर’
ट्यूब्स कॉलोनी बारीडीह,
जमशेदपुर, झारखण्ड।