नज़रों को तेरी कुछ नये मैं ख़्वाब दूं।
हर ख्वाहिश पर दम निकाल दूं।
अगर तू कहें तो खुद को मैं बिगाड़ दूं।।1।।
आकर बैठ पास तू पहलू में मेरे।
तेरी रूह को मोहब्बत से मैं संवार दूं।।2।।
तेरी सारी स्याह काली रातो को।
महताब की चांदनी के मैं सायेबान दूं।।3।।
छू ना सके कोई भी गम तुझको।
खुशियां जहां की इतनी मैं बेहिसाब दूं।।4।।
पढ़ कर तुम्हें सब ही गुनगुनाए।
तुझे कुछ यूं हर्फे ग़ज़ल में मैं उतार दूं।।5।।
भूलके हर गम सो जा सुकूं से।
नज़रों को तेरी कुछ नये मैं ख़्वाब दूं।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ