नज़राना
एक
तरफ इश्क़
दूसरी तरफ
फ़साना है
फरेब और
बेईमान का
ज़माना है
कब तलक
लडेगी
ये जिन्दगी
गैरों से
अब तो
मौत ही
एक नज़राना है
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
एक
तरफ इश्क़
दूसरी तरफ
फ़साना है
फरेब और
बेईमान का
ज़माना है
कब तलक
लडेगी
ये जिन्दगी
गैरों से
अब तो
मौत ही
एक नज़राना है
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल