नजर
तुम्हारा मेरा परिचय अबका नहीं, बहुत पुराना है
बीज में जैसे अंकुर देखता है, स्वप्न सजीले,
एक आंख फूटी सी, प्रकृति का आनंद लेता है
दूसरी आंख तो केवल दुख को समय के पतवारों का सहारा लेता है
उसे सुखों का एहसास नहीं, क्योंकि सुख उसके भाग्य में नहीं,
बंधनों का सहारा ले चलता है समाज ने उसे पंगु बना दिया है।
सहारे के लिये उसने बैसाखी ले ली है कोई कहना है वह लंगड़ा नहीं,
वह तो समाज को दिखाने को चलता है
समाज का असली रूप कुछ और है
उसके पीछे छिप-छिप कर चलता है।
हर वक्त किस कशमकश में लगे हो
तुम्हे हवा की धार का एहसास नहीं
‘अंजुम’ फूल की पत्तियां कठोर पत्थरों बना देती है
मेरे यार इसलिए संभलकर चल।
नाम-मनमोहन लाल गुप्ता
मोहल्ला-जाब्तागंज, नजीबाबाद, बिजनौर, यूपी
मोबाइल नंबर 9152859828