नजर
नजर तू देख रही किधर है ।
बुराइयो का जिधर कोई बवंडर है ।
हे! तू अच्छा क्यो नही देखती है ।
लगता हैं तू डूबी हुई मदहोश मे ।
ये कैसा दिख रहा मंजर है ।
नजर तू देख रही किधर है ।
नजरे ही प्यार का घर है ।
उस रूप को क्यो देखता है
जिसके अंदर लगती कोई ।
नजर मे गिराने की चरित्र को ।
जो मेरा सच्चा मित्र है ।
ये नजर तू देख रही किधर है ।