नजर के तीर
नजर के तीर तो चलाये प्यास पर बुझी नहीं
संभल -संभल के वो चली तो जिन्दगी मिली नहीं
जमीं मिली हरेक को यहाँ पे रहने के लिए
बुझा जो दिल उसी में अब चिंगारी लगी नही
चला वो सोच-सोच कर हरेक राह आज तक
मिलें बहुत से गम मगर ये बंदगी रूकी नहीं
गए जो रूठ आज अपनों से रोज यूँ ही अब
घुटी -घुटी सी जिन्दगी मे तिश्नगी नहीं
हँसी खुशी चली गई घड़ी वो अब थमी नहीं जगी नहीं जो प्यास जिन्दगी से मैकशी नहीं