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2 Jul 2017 · 1 min read

नजर आता है

मुझे हर तरफ कुछ ऐसा नजर आता है
कोई अपना मुझसे खफा नजर आता है

गर हँसने का नाम ही अगर ज़िन्दगी है
तो मुझे हँसी में कोई गम नजर आता है

तलाश में उनकी पत्थर से हो गया हूँ
तब उनका सिर झुकता नजर आता है

कल उनकी रानाइयाँ से जहाँ कायल था
आज उनका मुझे बुढापा नज़र आता है

जो कल पुराना देख कर हँसते थे कभी
आज वो नया भी पुराना नज़र आता है

वो थी तो जमाने की भीड़ थी पीछे
उसके बाद सिर्फ ये गम नज़र आता है

जिस डाली से टूटा है गुलाब चाहत का
वो शाख हाल बेहाल नज़र आता है

किसी को क्या लेना शाख के पत्ते से
टूटने पर शजर परेशां नजर आता है

जिसके आगोश में तिल तिल जला
वो शख्स मुझे धुआं नजर आता है

जिसके दरमियां जुगनुओं का वसेरा था
वो मुझे आज कल अंधेरा नजर आता है

जो कही जमी है धूल मेरे चेहरे पर
पर मुझे ये आयना मैला नजर आता है

मुकदर है तो मेरा किसी हसीन सपने सा
जिसमे सब कुछ बड़ा झूठा नजर आता है

ये चाहत ऋषभ शायद पानी जैसी है
जिसमे सब कुछ बहता नजर आता है

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