नजर आता है
नज़र आता है
जिसको देखो वो दूध का धुला नजर आता है
दूर से हर शख्स शरीफ नजर आता है।।
एक ही चेहरे पे अनगिनत नकाब
परखो तो असली चेहरा नजर आता है
खंजर छुपाने से कत्ल कहां छुपता है
यहां शागिर्द ही कातिल नजर आता है
वह उम्र भर रहा सफर पे शामिल
परिंदा भी अब थका हारा नज़र आता है
अब बरसातों का दौर कहां होता है
शहर का शहर बंजर नजर आता है।।
आईना तो टूट कर भी झूठ नहीं बोलता
हर शख्स क्यों झूठा नजर आता है।।
#किसानपुत्री_शोभा_यादव