नजरों से इशारा कर गए हैं।
वह आ करके महफिल में जब नजरों से इशारा कर गए हैं।
गमों के अंधेरों में खुशियों के कुछ जुगनू उजाला कर गए हैं।।1।।
इससे पहले राहते ना थी हमारी इस तन्हा जिन्दगी में।
पर वो अपना बनाकर हमको जीने का सहारा दे गए हैं।।2।।
चाहत ना थी जिन्दगी जीने की हमको इस दुनियां में।
डूबती कश्ती को हमारी समन्दर का किनारा दे गए हैं।।3।।
खरीद कर उनके बनाए सारे के सारे मिट्टी के दिए।
बनकर फरिश्ता वो गरीबों के घर चश्मे चरागा कर गए हैं।।4।।
मदद की उम्मीद क्या करें सब ही हम पर हंस रहे हैं।।
इश्क में हम तमाशाई आंखों का नज़ारा बन गए है।।5।।
कोई ना कर्ज़ चुका पाएगा उन शहीद वीरों का।
जो सरफरोश आज़ाद ए हिन्द इंकलाब का नारा दे गए हैं।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ