नजरअंदाज कर खुद को, वो देखते हैं जमाने में
नजर अंदाज कर खुद को, वो देखते हैं जमाने में
सारे इल्जाम गैरों पर,लगे हर राज वे छुपाने में
नहीं है इल्म धेले का, लगे वो इल्म का डंका बजाने में
नाचना खुद को नहीं आता, लगे हैं दुनिया वो नचाने में
बचा न सके खुद घर अपना, लगे दुनिया नई बसाने में
कसीदे क्या पढूं सुरेश, इनकी शानो शौकत में
शब्द भी शरमा रहे हैं, किस्से शराफत के बताने में