नजदीकियां हैं
गीतिका
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कभी दूरी कभी नजदीकियां हैं।
अजब हालात अपने दरमियां हैं।
जमाने की बहुत परवाह की जब।
मगर क्यों बंद सबकी खिड़कियां हैं।
सभी को सिर्फ है चिन्ता स्वयं की।
किसी की क्या यहां मजबूरियां हैं।
पहाड़ों पर बिछी है बर्फ देखो।
बहुत लंबी यहां की सर्दियां हैं।
नदी कल-कल सुनाती है तराना।
सुरों से निज गुँजाती घाटियां हैं।
उड़ी जाती बहुत ही हैं सुचंचल।
सभी का मन लुभाती तितलियां हैं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २१/०७/२०२४