‘नगराज हिमालय’
स्वीकारो हे नगराज नमन मेरा!
तुम ही भारत के गौरव गिरिवर राज।
युगों-युगों से करते आए हो रक्षा,
बन अथक वीर राग की तुम परवाज़।
हे ब्रह्म पुत्र!हे अचल यतीश्वर!
तुम धवल दुग्ध श्वेतांबर धारी।
तुम पर तो शिव भी हुए मुग्ध,
जो हैं सकल विश्व के अधिकारी।
तुम्हारी हृदय कंदराओं में तप करके,
हैं भेद अनेक ऋषियों ने पहचाने।
उद्यान औषधियों के भी तुम हो,
यह सत्य सकल भुवन माने।
तुम ही कोष नीर-क्षीर के हिमगिरि,
बहती हैं नदियाँ तुम से बलखाती।
हर सिंधु-सरोवर है तुमसे नगपति,
माँ वसुधा भी तुम से है हुलसाती।
हे आदि खंड! तुम हो अखंड,
आर्यवर्त की सीमा पर डाले रहते हो डेरा।
सतरंगी किरणों से सूर्य देव भी,
बिखराता हिम आंचल में प्रथम सवेरा।
हे नगाधिराज हिमपति विराट,
स्वीकारो नगराज नमन मेरा!