नख-दंत-विहीन कविता
तोड़ डालूं अपनी कविता के दांत!
अपने गीतों के छोटे नाखून कर दूं!!
क्या किसी अनहोनी के डर से मैं
अब अपनी चेतना का ख़ून कर दूं!!
तोड़ डालूं अपनी कविता के दांत!
अपने गीतों के छोटे नाखून कर दूं!!
क्या किसी अनहोनी के डर से मैं
अब अपनी चेतना का ख़ून कर दूं!!