नक्षत्र निशा सोम सितारे
नक्षत्र निशा सोम सितारे अर्चि, उद्विग्न हृदय हमारा है
चार कोश की दूरी भी अब, शत योजन सा किनारा है
प्राची दिस में नभ अवलोकन, प्रहर तीन तक जागा है
प्रस्त्रवण दृगंब चक्षु से, अनुमोदन प्रमोद भी त्यागा है
गृहस्थ सार में संन्यासी सा, तप शक्ति को साधा है
हे मेरी तू शक्ति स्वरूपा, बीजक शिखर में बाधा है
एक दूजे के घाल मेल में, जीवन सुखमय जारा है
कुनबे को खडहर कर करके, मांगे भीख सहारा है
तप शक्ति साहित्य धरोहर, तुझ बिन जीवन प्यासा है
अब तो केवल जीव मंत्र में, बची कुची तू आशा है
यादगार लम्हें लिखना भी, यहीं तो मेरी पूजा है
कसम कहूं मैं कसम तुम्हारी, ना दिल में कोई दूजा है
ना तृष्णा की प्यास तेरे प्रति, यहीं तारुण्य की माया है
शक्ति साधना ओत प्रोत से, श्रृंगार सजल नभ छाया है
मयूख प्रसारण नभ थल प्रकृति, कोटि समर में भानु हूं
हां सम्राज्ञी हवन यज्ञ उष्णीष में, जलता लपट कृशानु हूं
जग जननी उद्विग्न हृदय में, स्नेह निशा में पुष्प समर्पण
आकर तुम खुद बतलाओं, क्या क्या में कर डालू तर्पण
अम्बक में मोती धारण है, मन प्रश्न पत्र लिखा डाला है
उर अंतर को बेध ही डाला, बोली तिरछी सा भाला है
अंतिम प्रमाण भी मांग रहा जग, स्थिरता में आया है
नाथ पंथ निरपेक्ष भक्ति साधना, मेरे मन में भाया है
तन मन में स्पर्श करू क्या, मोह लग्न तुच्छ काया है
सपथ शिरोमणी श्री रघुनंदन, मन में बसे रघुराया है