नकलची बच्चा
नकलची बच्चा,
क्योंकि
अक्सर ये
नक़ल करता है ।
करता हूँ जो मैं
करता है वही ये
यदि उछलता हूँ मैं
उसके लिए
वैसे ही ये भी उछलता है;
जैसे मैं घुमाता हूँ हाथ
ये बच्चा भी
वैसे ही जगलरी करता है;
जब मैं मारता हूँ
गेंद को दीवाल पर
वो भी गेंद पटक कर
खुश होता है उछाल पर;
दिखाने को उसे जब
आवाज़ के साथ
चाय सुड़कता हूँ
ठीक वैसे ही उसके कृत्य पर
सबके साथ हँसता हूँ ।
मुस्कान के प्रत्युत्तर में मुस्कान
हँसी का ज़बाब ठट्टा देता है ।
चप्पल में मेरी वो
अपना पैर अटाता है,
भले इस प्रयास में
लुढ़क-लुढ़क जाता है ।
नकलची बच्चा
ये सब करता है ।
क्यों करता है?
शायद वो
जल्दी से
सब-कुछ सीख कर
बड़ा होना चाहता है ।
और मैं
सब-कुछ भूलकर
उसके जैसा
बेफ़िक्र-निर्दोष
एक बच्चा ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”