नए साल की पहली शाम
सोचा था इस साल ज़िंदगी,
जिएंगे हम बिंदास ज़िंदगी।
पर, रब को ये मंज़ूर न था।
होने को कुछ और ही था।
नज़र मिली, उसकी नज़रों से।
कुछ बोली नाज़ुक, अधरों से।
उसकी हसीं और उसकी बातें..
हाय, कटेंगी कैसे रातें।
साल की पहली शाम न पूछो।
उस पगली का नाम न पूछो।
नए साल की पहली शाम।
चंचल मृग नैनी के नाम।