नए भारत का उदय पेज नंबर 9
हमें इतना ही सोचना चाहिए की हमारी दिमाग की सोचने की शक्ति कमजोर ना हो जाए। सोचने की भी एक सीमा होती है। नहीं तो दिमाग की नस फट सकती है हमें विकास को उतनी ही गति देना थी की आम इंसान आलसी ना बन जाए। नहीं तो नहीं तो उसको गुलाम बनाने में देर नहीं लगेगी। आज स्थिति ऐसी ही निर्मित हो रही है। मशीनों के इस मशीनों के इस युग में हम आलसी बनने लगे हैं। जब हमारे पास मशीनें नहीं थी तब हम बहुत ही खुश थे । और हमारा विकास भी धीरे-धीरे बढ़ रहा था। हमने ही योग परिवर्तन की नींव डाली। हम बहुत थक चुके थे इसलिए हमने शारीरिक श्रम करना बंद कर दिया दीया। और मिशनरियों का का निर्माण किया ।