नए जूते
काॅलेज से वापस आने के बाद अक्षत ने ‘शू रैक’ में नए जूते देखे तो चहक कर बोला, “माँ, बहुत प्यारे जूते हैं।किसके हैं?”
“बेटा, ये तुम्हारे पापा के जूते हैं।उनके जूते पुराने हो गए थे, टूट भी रहे थे। कितनी बार मोची के पास लेकर जाते।”
योगेश कमरे में बेड पर लेटे-लेटे माँ-बेटे के मध्य होने वाले वार्तालाप को ध्यान से सुन रहे थे। उन्होंने सोचा, जूते तो अक्षत के भी पुराने हो गए हैं पर इस महीने तो अब उसके लिए जूते खरीदना संभव नहीं। उन्होंने मन ही मन अक्षत के लिए नए जूतों के लिए एक उपाय सोचा। अगले दिन वे ऑफिस नए जूते पहनकर चले गए और शाम को वापस आकर उन्हें झाड़- पोंछकर रख दिया।
पत्नी सुमन से कहा, “इन जूतों ने तो पैर काट दिया।इनमें पैरों को आराम नहीं लगता।”
अगले दिन जब वे अक्षत के पुराने जूते पहनकर ऑफिस जाने लगे तो सुमन ने उनके मन की बात भाँप ली।
जब अक्षत काॅलेज जाने के लिए तैयार होने लगा तो उसे अपने जूते नहीं मिले। उसने माँ से पूछा,” माँ मेरे जूते नहीं मिल रहे। कहाँ रख दिए? यहाँ पर तो पापा के नए वाले जूते रखे हैं।”
“बेटा, आपके पापा कह रहे थे कि इन नए जूतों से पैरों में छाले पड़ गए हैं।चलने में परेशानी हो रही है।इसलिए तुम्हारे जूते पहनकर ऑफिस गए हैं। ऐसा करो , तुम उनके नए वाले जूते पहनकर काॅलेज चले जाओ।”
अक्षत खुशी-खुशी पापा के नए जूते पहनकर पहनकर चला गया।
दो दिन बाद रविवार को जब अक्षत ने अपने पापा के पैरों को देखा तो उनसे पूछा, पापा आपके पैरों में तो कहीं कोई छाला नहीं दिख रहा। माँ कह रही थीं कि नए जूतों से आपके पैरों में छाले पड़ गए थे इसलिए आप मेरे पुराने जूते पहनकर ऑफिस जा रहे थे।
“बेटा, मुझे वे जूते कुछ अच्छे नहीं लगे।वे चमकदार भी ज्यादा हैं। अब इस उम्र में इस तरह के जूते मैं पहनूँ ये अच्छा नहीं लगता। आप लोगों की बात और है।आप लोगों पर तो सब कुछ फबता है।अब नए जूते मैं पहनूँ या तुम पहनो, बात तो एक ही है।”
पिता जी की ये बात सुनकर अक्षत की आँखें नम हो गईं और वह समझ गया कि पिताजी अपने लिए खरीदकर लाए नए जूते दूसरे दिन से पहनकर ऑफिस क्यों नहीं गए।
डाॅ बिपिन पाण्डेय