नई हवा चल रही है..
जीवन मूल्यों की प्रतिपल परिभाषा बदल रही है।
लालच लोभ प्रपंच की नई हवा चल रही है।।
हो गया है बोलवाला फरेब झूँठ बेईमानी का,
त्याग तप और ईमानदारी पकौड़े तल रही है।।
चापलूसी पाखण्ड दिखावे के नये युग में,
मेहनत देवी कोने में खड़ी हाथ मल रही है।।
कौन किसे सम्बल दे, साथ दे सुख दुख: में,
भौतिकता की मरुभूमि में नागफनी पल रही है।।
बात की बात और भरोसे पे ऐतवार मत करना,
शर्मो-हया के गुब्बारे की हवा निकल रही है।।