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4 Feb 2017 · 1 min read

नई सत्ता—ग़ज़ल

लों सत्ता के शबाब का नया मौसम आ गया
कहते थे बाहर से, अब चखने का समां आ गया

न जाने कितना दर्द सहा था लोगों ने आम के लिए
केजरीवाल को सिरमौर बनाने का समां आ गया

तुम क्या थे, क्या क्या किया था, कल तक तुमने
सारी छान बीन करने का अब मेरा मौसम आ गया

बड़ा सताया था आम आदमी,को तुमने चुनाव से पहले
अब मेरी सरकार बन्नने का समां नजदीक आ गया

आम आदमी की पार्टी को, आम समझना हुआ मुश्किल
अब आम मेरे और तुम्हारा ,गुठली खाने का मौसम आ गया

पब्लिक का समर्थन , और उन का साथ निभाने का
और सत्ता से गुंडा गर्दी ,भागने का मौसम आ गया

अपने कर्मो का हिसाब तो सब, को देना ही पड़ेगा अब
कितना दम है मुझमे , यह दिखाने का मौसम आ गया

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

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