*नई मुलाकात *
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
*नई मुलाकात *
तुम जब से खफा हुये हमसे जिंदगी रूठ गई ।
कोशिश मेरी तमाम इसको सँवारने की बेकार हो गई ।
सोच से परे स्वप्न थे भरे यौवन की तरंग में भीग हम रहे ।
ये दिन भी आएगा हमको पड़ेगा रोना था सोच से परे ।
वो था पहला दिन कॉलेज का और तुमसे हुई मुलाकात ।
हैरान थे हम परेशान से बिना रस्सी की गाय से भटके हुये ।
सब कुछ नया – नया अजनबी सा माहौल लेकिन रोमांच से भरा ।
फिर हुई बारिश तपिश मिट गई , बंजर जमीन पर कली खिल गई ।
सोच से परे स्वप्न थे भरे यौवन की तरंग में भीग हम रहे ।
पानी ही पानी था क्या अंदर क्या बाहर – एक जुनून खुशगंवार ।
तुम जब से खफा हुये हमसे जिंदगी रूठ गई ।
कोशिश मेरी तमाम इसको सँवारने की बेकार हो गई ।
रंग बदला , हवा बदली , मौसम ने अपनी दिशा बदली ।
तुम्हारे सोच के साथ – साथ तल्खी ने भी नरमी अपना ली ।
तेवर बदल गए हो सकता है तनहाई में हम याद या गए ।
पहले प्यार का आलम अजीब सा दोपहर की गुलाबी धूप सा ।
तुमने मुझे पुकारा जब मेरे तो सोये जज़्बात हिल गए ।
बादल सभी छटने लगे फिर से और इंद्रधनुष खिल गए ।
वो था पहला दिन कॉलेज का और तुमसे हुई मुलाकात ।
हैरान थे हम परेशान से बिना रस्सी की गाय से भटके हुये ।